कर्मा (1986): देशभक्ति, बदला और बम ब्लास्ट ने बॉक्स ऑफिस फाड़ डाला

शालिनी तिवारी
शालिनी तिवारी

1986 की सुपरहिट फिल्म “कर्मा” कोई आम मसाला फिल्म नहीं थी। यह वो टाइम था जब दिलीप कुमार थप्पड़ मारते थे और विलेन की पूरी आत्मा हिल जाती थी। सुभाष घई ने इस फिल्म में देशभक्ति, बदला, थप्पड़, ट्रेनिंग मोंटाज और गाना “ऐ वतन तेरे लिए” को एक ही फ्रेम में पिरोकर बॉक्स ऑफिस का लहूलुहान कर दिया।

डॉ. डांग: नाम सुनते ही थप्पड़ की गूंज आती थी

अनुपम खेर की सबसे क्रूर, स्लीक और स्लीमी भूमिका – डॉ. माइकल डांग – एक ऐसा आतंकवादी जो जेल में वार्डन पीट सकता था, लेकिन दादा ठाकुर (दिलीप साहब) के एक थप्पड़ के बाद उसकी आत्मा बॉर्डर क्रॉस कर गई।

मुझे मारने वाला अभी पैदा नहीं हुआ है!” – डॉ. डांग
पैदा तो हो गया है… नाम है कर्मा!” – जनता की प्रतिक्रिया

राणा विश्व प्रताप सिंह – सिर्फ इंसान नहीं, पूरा सिस्टम थे

जब सिस्टम फेल हो, तो दिलीप कुमार खुद राणा विश्व प्रताप सिंह बनकर जेल को सुधार गृह बना देते हैं, और फिर बदले की आग में, एक रिटायर्ड पुलिसवाले को बॉर्डर पार भी भेज सकते हैं।

सिस्टम की कमी हो तो क्या, दिलीप साहब की एक्सप्रेशन से ही दहशत फैल जाती है!

बैजू, जॉनी और खैरू – आतंक के खिलाफ तगड़ी तिकड़ी

जैकी श्रॉफ, अनिल कपूर और नसीरुद्दीन शाह – तीन रंग, तीन अंदाज़, लेकिन एक मिशन। इनकी ट्रेनिंग मोंटाज से लेकर बॉम्ब फटाने तक की जर्नी, आज भी गूगल ड्राइव में सेव रखने लायक है।

  • जैकी = रफ एंड टफ

  • अनिल = स्वैग एंड स्लैपस्टिक

  • नसीर = ट्रैजिक एंड ब्रेव

और हाँ, खैरू का बलिदान देखकर आँखें नम हो जाती हैं… और बैकग्राउंड में बजता है – “ऐ वतन… तेरे लिए!

साउंडट्रैक जिसने 80s की हर बाइक और चाय की दुकान में कब्ज़ा कर लिया

  • “मेरा कर्मा तू…” – जब मिशन भी म्यूजिकल हो सकता है!

  • “ऐ वतन तेरे लिए…” – हर स्कूल के स्वतंत्रता दिवस का नेशनल एंथम (गैर आधिकारिक)

  • “दे दारू…” – क्योंकि देशभक्ति के साथ थोड़ा ड्रामा भी चलेगा

लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल + आनंद बख्शी = Box Office Symphony

राधा और तुलसी – प्यार भी जरूरी है, मिसाइलों के बीच में भी

क्या प्यार सिर्फ युद्ध के बाद होता है?
बैजू और राधा, जॉनी और तुलसी की लव स्टोरी ने साबित कर दिया कि “शादी से पहले देशभक्ति, शादी के बाद रोमांस” – यही है Karma Code!

बम, बदला और बंदूकें

जहाँ कहानी आतंकवाद से शुरू हुई थी, वहाँ खत्म भी धमाके से हुई। खैरू का बलिदान, राणा साहब की वापसी, और डॉ. डांग की मात – सबकुछ इतना सिनेमाई था कि थिएटर में बैठे लोग भी ‘जय हिंद’ बोलने लगे।

कर्मा देखो, देश से प्यार हो जाएगा (और Action भी)

अगर आपने आज तक Karma (1986) नहीं देखी है, तो आपने असल में 80s का सिनेमा मिस कर दिया है। ये वो दौर था जब एक फिल्म में सब कुछ होता था – Deshbhakti, Dhamaka, Drama और Dance

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